आत्मया ज्ञान -- Jai Sri Krishna
जिस प्रकार मानुष पुराने वस्त्र को त्यागकर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीरो को त्यागकर नबीन भोतिक शरीर धारण करता है|
तात्पर्य:------------- अणु-अत्मा द्वारा शरीर का परिबर्तन एक स्रीकित तथ्य है | आधुनिक बिग्यानीजन तक , जो आत्मा के अस्तीब पर बिस्वास नहीं करते, पर साथ ही हृदय से शक्ति-साधन की ब्याखा भी नहीं कर पाते, उन परिबर्र्तनों को स्वीकार करने को बाध्य है, जो बाल्यकाल से कुमाराबस्था और फिर तरुणाबस्था तथा बृद्धाबस्था होते रहते है | बृद्धाबस्था से यही परिबर्तन दूसरे शरीर में स्थानान्नरित हो जाता है |
अणु-अत्मा का दूसरे शरीर में स्थानान्नरण परमात्मा की कृपा से सम्भव हो पाता है | परमात्माअणु-अत्मा की इच्छाओं की पूर्ति उसी तरह करते हे जिस प्रकार एक मित्र दूसरे की इछापूर्ति करता है | मुण्डक में आत्मा तथा परमात्मा की उपमा दो मित्र पक्षीयों से दी गई है जो एक ही वृक्ष पर बैठे है | इन में से एक पक्षी (अणु-अत्मा) वृक्ष के फल को खा रहा है और दूसरा पक्षी(कृष्ण) अपने मित्र को देख रहा है | यादापी दोनों पक्षी समान गुण बाले है, किन्तु इनमे से एक भौतिक वृक्ष के फलों पर मोहित है, किन्तु दूसरा अपने मित्र का साक्षी मात्र है |कृष्ण साक्षी पक्षी है, और अर्जुन फल-भौकता पक्षी | यादापी दोनों मित्र(सखा) है, किन्तु फिर भी एक स्वामी है और दूसरा सेबक है | अणु-अत्मा द्वारा इस संबंध की बिस्मुति ही उसके एक वृक्ष से दूसरे पर जाने या एक शरीर से दूसरे में जाने का कारण है | जीब आत्मा प्राकृत शरीर रूपी वृक्ष पर अत्यधिक संधर्षशील है, किन्तु वह जोह दूसरे पक्षी को परम गुरु के रूप में स्वीकार करता है -- जिस प्रकार अर्जुन कृष्ण का उपदेश ग्रहण करने के लिए स्बेच्छा से उनकी शरण में जाता है-- तब परतंत्र पक्षी तुरन्त सारे शोकों से बिमुक्त हो जाता है |
"यदापी दोनों पक्षी एक
ही वृक्ष पर बैठे है, किन्तु फल बाला पक्षी वृक्ष के फल
के भौकतारूप में चिंता तथा बिषाद में निमग्न है | यदि किसी तरह वह अपने मित्र
भगबान की और उन्मुख होता है और उनकी महिमा को जान लेता है वह कष्ट भोगने
बाला पक्षी तुरन्त चिन्ताओ से मुक्त हो जाता है "
इसप्रकार वह कृष्ण की शरण करके भगबान की परम महिमा को समझ कर शोक से मुक्त हो सकता है |
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