Saturday, August 3, 2013

संसार के सरे भॊतिक कार्यकलाप..

जीबन की बिभिन्न आबस्यक्ताओं की पूर्ति करने बाले बिभिन्न देबता यज्ञ सम्पन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी आबस्यक्ताओंकी पूर्ति करेंगे । किन्तु जो इन उपहारों को देबताओं को अर्पित किये बिना भोगता है , बह निश्चित रूप से चोर है। 


 
तात्पर्य:--  देबतागन भगबान बिष्णु दयारा भोग-सामग्री प्रदान करने के लिए अधिकृत किये गये है ।  अत: नियत यज्ञों दयारा उन्हें अबश्य संतुस्ट करना चाहिए । बेदों में बिभिन्न   देबताओं के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के  यज्ञों की संस्तुति है , किन्तु बे सब अन्तत: भगबान् को ही अर्पित किये जाते है । किन्तु जो यह नहीं समझ सकता की भगबान् क्या है , उसके लिए देबयज्ञ का बिधान है । अनुष्ठानकर्ता के भौतिक  गुणों के अनुसार  बेदों में बिभिन्न प्रकार के यज्ञों का बिधान है । बिभिन्न   देबताओं की पूजा भी उसी आधार पर अर्थात गुणों के अनुसार की जाती है । उदाहरणार्त , मांसाहारियों को देबी काली की पूजा करने के लिए कहा जाता है , जो भौतिक प्रकृति की घोर रूपा है और देबी के समक्ष पशुबलि का आदेश है । किन्तु जो सतोगुणी है उनके लिए बिष्णु की दिब्य पूजा बताई जाती है । अनन्त: समस्त यज्ञों का दिब्य-पद प्राप्त करना है । सामान्य ब्यक्तियों के लिए कम से कम पाँच यज्ञ आबस्यक है , जिन्हें  पञ्चमहायज्ञ कहते है। 


किन्तु मनुष्य को यह जानना चहिए की जीबन की सारी आबस्यकताएँ भगबान के देबता प्रतिनिधियों दबाया ही पूरी की जाती है । कोई कुछ बना नहीं सकता ।  उदाहरणार्त , मनाब समाज के भोज्य पदर्थो को लें ।  इन भोज्य पदर्थो में  शाकाहारियों के लिए अन्न, फल, शाक, दूध, चीनी, आदि है तथा मांसाहारियों के लिए मांसादि  जिनमे से कोई भी पदार्थ मनुष्य नहीं बना सकता । एक और उदहारण लें --- यथा ऊष्मा , प्रकाश , जल , बायु आदि जो जीबन के लिए आबस्यक है , इनमे से किसी को बनाया नहीं जा सकता । परमेश्वर के बिना न तो प्रचुर प्रकाश मिल सकता है , न चांदनी , बर्षा या प्रात:कालीन समीर ही , जिनके बिना मनुष जीबित नहीं रह सकता । स्पष्ट है की हमारा जीबन भगबान दयारा प्रदत्त बस्तुओं पर आशित्र है । यहाँ तक की हमें अपने उत्पादन के लिए अनेक कच्चे मालों की आबस्यकता होती है यथा धातु , गंधक , पारद , मेंगनीज तथा अन्य अनेक आबस्यक बस्तुएँ जिनकी पूर्ति भगबान के प्रतिनिधि इस उदेश्य से करते है की हम इनका समुचित उपयोग करके आत्म-  साझात्कार के लिए अपने आपको स्वस्थ एबं पुष्ट बनायें जिससे जीबन का चरम लक्ष्य अर्थात् भौतिक  जीबन-संघर्ष से मुक्ति प्राप्त हो सके ।  यज्ञ  सम्पन्न करने से मानब जीबन का यह लक्ष्य प्राप्त हो जाता है । यदि हम जीबन-उदेश्य को भूल कर भगबान के प्रतिनिधियों से अपनी इन्द्रियतृप्ति  के लिए बस्तुएँलेते रहेंगे और इस संसार में अधिकाधिक फँसते जायेंगे , जो की सुस्टि का उदेश्य नहीं है तो निश्चय ही हम चोर है और प्रकृति के नियंमों दयारा दण्डित होंगे । चोरों का समाज कभी सुखी नहीं रह सकता क्योंकि उनका कोई जीबन-लक्ष्य नहीं होता । भौतिकताबादी चोरों का कभी कोई जीबन-लक्ष्य नहीं होता । उन्हें तो केबल इन्द्रियतृप्ति की चिंता रहती है , बे नहीं जानते की यज्ञ किस तरह किये जाते है । किन्तु चैतन्य  महाप्रभु ने यज्ञ दयारा , जो कृष्णभाबनामृत के सिध्दान्तौं को अंगीकार करता है , सम्पन्न किया जाता है ।        

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